AI से क्यों डर रही है दुनिया? मशीन और इंसान का भूत, वर्तमान और भविष्य

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AI से क्यों डर रही है दुनिया? मशीन और इंसान का भूत, वर्तमान और भविष्य

AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस… इस वक्त टेक वर्ल्ड में इससे ज्यादा चर्चा वाला कोई टर्म ही नहीं है. आए दिन हम सुनते हैं कि AI की वजह कई लोगों की नौकरी चली गई. दुनियाभर में चर्चा है कि आने वाले वक्त में AI करोड़ों लोगों को नौकरी खत्म कर देगा. गोल्डमैन सैश की रिपोर्ट के मुताबिक, 2030 तक दुनियाभर में 30 करोड़ लोग AI की वजह से अपनी नौकरी खो देंगे.  

इसका सबसे ज्यादा प्रभाव कोडर, कंप्यूटर प्रोग्रामर, सॉफ्टवेयर इंजीनियर, डेटा एनालिस्ट, लिगल इंडस्ट्री, मार्केट एनालिस्ट रिसर्च जैसी जॉब्स पर पड़ेगा. हालांकि, धीरे-धीरे ये तमाम दूसरे सेक्टर्स में भी अपना दखल देगा और उधर भी लोगों की नौकरियां जाने का खतरा बढ़ेगा. तो क्या AI सिर्फ नौकरी खत्म करने आया है.

भारत हो या अमेरिका. यूरोप या दुनिया का कोई और हिस्सा. सिलिकॉन वैली सैन फ्रांसिस्को से लेकर टेक सिटी बेंगलुरु तक आज हर शहर के कॉरपोरेट दफ्तरों में इस बात से ज्यादा शायद ही किसी और चीज की चर्चा हो. लोग समझना चाहते हैं कि आखिर ये AI बला क्या है जो लाखों-करोड़ों लोगों की नौकरियां खाने को तैयार दिख रहा है? कहां से आया है और इंसान इसका मुकाबला क्यों नहीं कर सकेगा?

ऐसे कई सवाल हैं जो लोगों की मंडलियों में और सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बने हुए हैं. जिन्हें देश का आम इंसान समझना चाहता है. जिसे टेक्नोलॉजी के यूजर भी अलग-अलग तरीके से देख रहे हैं. कोई AI को अपना दोस्त मान रहा है तो कोई इसे तकनीकी दैत्य के रूप में देख रहा है.

दरअसल रोबोट्स, साइबॉर्ग, सुपर ह्यूमैन… ये ऐसी फ्यूचर अवधारणाएं हैं, जिनका इंसानों की जिंदगी में दखल तेजी से बढ़ता दिख रहा है. सीधे शब्दों में कहें तो वो रथ जिसपर सवार होकर ये साइंटिफिक आविष्कार इंसानी जिंदगी में तेजी से दखल बढ़ाते जा रहे हैं वह है AI.

यानी विज्ञान और तकनीक का सबसे ताजा आविष्कार जिसकी आज दुनिया में सबसे ज्यादा चर्चा है. जिसने आज एक आम इंसान को सबसे ज्यादा चौंक दिया है. नौकरीपेशा लोगों में सबसे ज्यादा खौफ है और जिसे पूरी दुनिया में, इंसानों की जिंदगी में किसी आने वाले क्रांतिकारी बदलाव के आने के शुरुआती संकेत के रूप में देखा जा रहा है. अब सवाल उठता है कि आखिर ये AI है क्या और क्या काम करता है जो इंसान नहीं कर सकता?

आखिर ये AI है क्या?

AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को आसान शब्दों में कहें तो ये मशीनों में इंसानों की तरह की बुद्धि यानी बौद्धिक क्षमता है. इसे आर्टिफिशियल तरीके से विकसित किया गया है. कोडिंग के जरिए मशीनों में इंसानों की तरह इंटेलिजेंस विकसित की जाती है ताकि वह इंसानों की तरह सीख सकें, खुद से फैसले ले सकें, कामों को खुद से कर सकें और एक साथ बहुत सारे कामों को पूरा कर सकें.

इस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के ज़रिए कंप्यूटर सिस्टम या रोबोटिक सिस्टम को ऐसे तैयार किया जाता है, जिसे ये उन्हीं तर्कों के आधार पर चलाने का प्रयास करते हैं, जिनके आधार पर मानव मस्तिष्क काम करता है.

AI काम कैसे करता है?

AI… दरअसल मशीन लर्निंग के जरिए बिल्कुल इंसान जैसी बुद्धि के विकास की प्रक्रिया है. इससे मशीन इंसान की मदद के बिना कंप्यूटर प्रोग्राम से ऑटोनॉमस रूप से सीखती है. यानी आप मशीन को कोई कमांड देते हैं और वो अपनी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के हिसाब से फैसला करती है और फिर उस कमांड पर काम करती है.

आसान शब्दों में कहें, तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इंसानों की तरह सोचने वाला सॉफ्टवेयर है, जो इंसानों की ही फैसलों से सीखता है. AI ये अध्ययन करता है कि मानव मस्तिष्क कैसे सोचता है और समस्या को हल करते समय कैसे सीखता है, कैसे निर्णय लेता है और कैसे काम करता है? इन सभी लॉजिक के बदौलत ही AI उस जैसी परिस्थिति में फैसले लेता है.

AI का इस्तेमाल किन जगहों पर हो रहा है?

AI का दखल तमाम क्षेत्रों में तेजी से बढ़ रहा है. इसके जरिए न केवल सॉफ्टवेयर और ऐप्स की कोडिंग, बल्कि लिखने, फोटोग्राफी, फोटो और ग्राफिक्स डिजाइनिंग, एडिटिंग, मेडिकल, एजुकेशन जैसे काम आसानी से और चुटकी में बड़े पैमाने पर संभव हो रहे हैं. साथ ही, रोड-रेल-विमान ट्रांसपोर्टेशन में ट्रैफिक कंट्रोल, स्मार्ट कार, सेल्फ ड्राइविंग कार, वैक्यूम क्लीनर, पर्सनल असिस्टेंट रोबोट आदि के रूप में भी दुनिया भर में तेजी से AI का इस्तेमाल बढ़ा है.

पिछले कुछ सालों में AI का इस्तेमाल दुनियाभर में तेजी से बढ़ा है और पिछले कुछ महीनों में तो AI ने क्रांतिकारी तरीके से अपनी जगह बनाई है. जैसे चैटबॉट जो वेबसाइटों पर या Alexa जैसे स्मार्ट स्पीकर, जो हमारे आसपास दिखाई देते हैं. इसके अलावा AI का इस्तेमाल एजुकेशन, गेमिंग, मौसम का पूर्वानुमान लगाने, उद्योगों में प्रोडक्शन सिस्टम ठीक करने, अकाउंटिंग आदि कई कामों में ऑलरेडी दुनिया कर रही है. भारत में भी अमेरिका-जापान जैसे देशों से तेजी से AI आधारित तकनीक आ रही है जो आने वाले दिनों में हमारे-आपके कई कामों का हिस्सा होगी.

हेल्थकेयर में तो किसी वरदान से कम नहीं है AI

हेल्थकेयर में एआई न केवल सामान्य स्वास्थ्य देखभाल, बॉडी के पैरामीटर्स की मॉनिटरिंग और डायगनोस्टिक में इस्तेमाल हो रहा है बल्कि एआई स्कैन के जरिए शरीर की छोटी से छोटी दिक्कतों की पहचान करने में भी मदद मिल रही है. एआई का इस्तेमाल मरीजों की कैटेगरी के आधार पर पहचान करने, उनकी खास स्वास्थ्य जरूरतों की पहचान करने, इलाज के लिए हर मरीज पर फोकस कर प्लान करने, उन्हें रिमाइंड करने और उनकी मॉनिटरिंग करने, मेडिकल रिकॉर्ड बनाए रखने और ट्रैक करने और स्वास्थ्य बीमा दावों से निपटने के लिए भी किया जाता है. एक्सपर्ट AI बेस्ड रोबोटिक सर्जरी, वर्चुअल नर्स या डॉक्टर आदि सुविधाओं के लिए भी एआई को भविष्य में काफी कारगर मानते हैं.

AI के इतिहास से वर्तमान तक की कहानी

-AI की कहानी की शुरुआत 1950 के दशक में होती है जब एलेन ट्यूरिंग ने मशीन लर्निंग के परीक्षण के लिए Three Laws of Robotics पब्लिश की और ट्यूरिंग टेस्ट पेश किया. इसमें दिखाया गया कि इंसानों की तरह मशीनों को सिखाया जा सकता है.

-1958 में MIT में जॉन मैकार्थी ने Lips प्रोग्रामिंग लैंगुएज डेवलप किया जिससे AI एप्लीकेशन बनने का रास्ता खुला.

-साल 1968 में इंटेलिजेंट नॉलेज बेस्ड चेस प्लेइंग प्रोग्राम के बनने से एआई की दिशा में सफलता का पहला रास्ता खुला.

-साल 1979 में डेवलप हुए नॉलेज बेस्ड मेडिकल डायगनोस्टिक प्रोग्राम INTERNIST के विकास ने नए-नए क्षेत्रों में AI के विकास का रास्ता खोला.

-फिर साल 1987 में पहला कमर्शियल स्ट्रैटजिक एंड मैनेजरियल एडवाइजरी सिस्टम के डेवलपमेंट ने AI के फील्ड को और विस्तार दिया.

-इसके अगले दशक में फिर इस दिशा में काम आगे बढ़ा कि कैसे मशीनें अपने आसपास के वातावरण को समझ सकती हैं, उसमें बदलावों का संदर्भ, उसका कारण समझ सकती हैं और ऐसा करते हुए ठीक इंसानों की बुद्धि की तरह वे अपने इंटेलिजेंस का भी इस्तेमाल कर सकती हैं.

-AI के इस्तेमाल से मशीनों को इस तरह से ट्रेन किया जाने लगा कि वे प्रॉब्लम्स की पहचान कर सकें, उनके कारणों को समझ सकें और एलगोरिद्म के जरिए उस लेवल पर तैयार की जा सकें कि वे इस लर्निंग के आधार पर आगे की रणनीति भी बना सकें और फिर से वैसी प्रॉब्लम आने पर उसे पहचान कर उनका समाधान भी कर सकें.

-1997 में दुनिया ने फिर एक बड़ा रोमांचक मोड़ देखा जब IBM के बनाए डीप ब्लू चेस मशीन ने उस समय के वर्ल्ड चैंपियन गैरी कास्परोव को हरा दिया. ये एक मशीन और इंसान के ब्रिलिएंस के बीच एक ऐतिहासिक टेस्ट था जिसमें मशीन के इंटेलिजेंस के सामने इंसानी बुद्धि मात खा गई और ये साबित भी हुआ कि बौद्धिक काम मशीन भी कर सकती हैं और वो भी इंसानों की तरह बुद्धि का इस्तेमाल करके और खुद से फैसले करके.

नए आविष्कारों को लेकर इतिहास के सबक…

#जब कंप्यूटरों के खिलाफ छिड़ा था आंदोलन
AI जैसी नई खोज या कहें तो अल्ट्रा-मॉडर्न तकनीकी आविष्कार को लेकर इंसान का खौफ कोई नया नहीं है. इतिहास गवाह है कि जब भी दुनिया में कोई भी नया आविष्कार हुआ है लोगों ने शुरुआत में उसे खौफ की निगाह से देखा है. 1980 के दशक में जब भारत में कंप्यूटर आया तो इसका भी विरोध हुआ था. तमाम विपक्षी पार्टियां, खासकर वामपंथी दल इसके खिलाफ सड़कों पर उतर आए थे. इसे ऐसे पेश किया गया कि कंप्यूटर के आते ही इंसानों का काम खत्म हो जाएगा, नौकरियां खत्म हो जाएंगी. आज कई दशक बाद दुनिया ये देख चुकी है कि कंप्यूटरों के आने से लोगों के जीवन में कितना बदलाव हुआ है, बल्कि कंप्यूटर हर काम के लिए जरूरी बन चुका है और नौकरियां कम होने की जगह इससे बढ़ी ही हैं.

#रेल की पटरियां जब दैत्य लगती थीं
अमेरिका में जब रेल लाइनें पहली बार बिछाई जा रही थीं तो किसानों ने जमकर विरोध किया. लोगों को लगता था कि खेतों में बिछाई गई पटरियों के ऊपर से जब रेलें गुजरेंगी तो आसपास काफी दूर तक के खेतों में लगी उनकी फसलें जल जाएंगी. धीरे-धीरे ट्रेनें चलीं और लोगों की गलतफहमी भी खत्म हुई.

इसी तरह भारत में जब पहली बार अंग्रेजी राज में रेल चली तब भी इसे औद्योगिक लूट का जरिया और लोगों को मिटाने के लिए लाया गया कॉरपोरेट हथियार बताया गया था, लेकिन आज भारत जैसे बड़े देश में रेल लाइफलाइन हैं. व्यापार से लेकर इतने बड़े देश में यात्राओं के लिए रेलों में भरी भीड़ बताती है कि देश के लिए रेलवे नाम की लाइफलाइन कितनी जरूरी है.

#मशीनों को बहुत मुश्किल से जब इंसान ने पचाया
ऐसे ही 19वीं शताब्दी की शुरुआत में जब औद्योगिक क्रांति के तहत पश्चिमी यूरोप के देशों में बड़े-बड़े उद्योग स्थापित हो रहे थे और इन उद्योगों में मशीनों का इस्तेमाल हो रहा था तो मशीनों को इंसानों के दुश्मन के तौर पर देखा गया. उस समय ये कहा गया कि मशीनें इंसानों से उनका काम छीन लेंगी और इंसान बेरोजगार हो जाएंगे.

उस समय मजदूर ऐसी फैक्ट्रियों में तोड़फोड़ करते थे, जहां मशीनों का इस्तेमाल होता था. मजदूर संघों ने हड़तालें की और कहा कि अगर ये मशीनें आ गईं तो इंसान भूखों मरेगा. ब्रिटेन के मशहूर आविष्कारक John Kay ने जब कपड़ा बनाने के लिए मशीन बनाई तो कुछ लोगों ने इंग्लैंड में उनका घर जला दिया था. ये बात वर्ष 1753 की है. उस समय तो इस मशीन का विरोध हुआ. लेकिन दो दशकों के बाद ये मशीन कपड़ा उद्योग में एक नई क्रान्ति ले आई थी.

क्यों दुनिया में AI को लेकर है खौफ?

दुनिया में पिछले दो दशकों से जिन नए-नए प्रोफेशनल जॉब्स ने युवाओं के लिए प्रगति के रास्ते खोल दिए थे आज उन्हीं क्रिएटिव नौकरियों पर AI से सबसे ज्यादा खतरा मंडराता दिख रहा है. उदाहरण के लिए सॉफ्टवेयर जॉब्स, PR, राइटिंग, एडिटिंग, डिजाइनिंग जैसी नौकरियों पर. ChatGPT जैसे एआई टूल्स इन्हीं कामों को सिस्टमेटिक तरीके से और चंद सेकंडों में पूरा कर रहे हैं. एआई के साथ सबसे खास बात है कि वह दिए हुए टास्क को न केवल पूरा करता है बल्कि हर बार पुराने अनुभव से सीखता है और सुधार करते जाता है. उसकी स्पीड का मुकाबला करना इंसान के वश का नहीं है.

इसी साल मार्च महीने में Goldman Sachs की आई एक रिपोर्ट के अनुसार- आने वाले कुछ सालों में AI दुनिया भर में 30 करोड़ नौकरियों को रिप्लेस करने की क्षमता रखेगा. पिछले साल आई PwC की रिपोर्ट के अनुसार तकनीक के तेजी से बदलने के कारण एक तिहाई लोग अगले तीन सालों में अपने रोजगार पर संकट देख रहे हैं. भारत में भी एआई के तेजी से पांव पसारते जाने के कारण वर्किंग क्लास के अंदर डर बढ़ता जा रहा है. माइक्रोसॉफ्ट के एक हाल के सर्वे के अनुसार ChatGPT, Google Bard और Microsoft Bing जैसे एआई टूल्स के कारण कई कामों में कंपनियों को आसानी होती जा रही है और ह्यूमैन वर्क फोर्स पर निर्भरता कम होती जा रही है.

इस सर्वे में पाया गया कि भारत में 70 फीसदी प्रोफेशनल मानते हैं कि एआई जैसे नए टूल के कारण उनका रोजगार खतरे में आ सकता है. प्रोफेशनल क्रिएटिव स्किल पर शोध में पाया गया कि देश में 90 फीसदी बिजनेस लीडर मानते हैं कि एआई के साथ चलने के लिए तकनीकी ग्रोथ के अनुसार उन्हें अब टैलेंट सेलेक्ट करने की ओर बढ़ना होगा. जबकि भारत में 78 फीसदी प्रोफेशनल वर्क फोर्स ये मानता है एआई जैसे तकनीकी विकास के साथ काम करने की वर्तमान में उनके पास टैलेंट नहीं है.

जबकि दूसरी ओर बिजनेस मैनेजर्स का एक बड़ा तबका इसे अपॉर्चुनिटी के रूप में भी देख रहा है कि एआई जैसे टूल्स के आने से रोजगार कम होने की जगह बिजनेस को और सिस्टमेटिक बनाने में मदद मिल सकती है. माइक्रोसॉफ्ट के बिंग चैट की लॉन्चिंग पर सीईओ सत्या नडेला ने कहा था कि नई तकनीक जाहिर तौर पर कुछ रोजगार के लिए संकट पैदा करती है लेकिन इससे क्रिएटिविटी और प्रोडक्टिविटी बढ़ाने में भी मदद मिलती है.

AI के फायदे-नुकसान पर क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

सबसे ज्यादा सवाल उठ रहे हैं AI को लेकर कि ये बहुत सारी नौकरियों को खा जाएगा. खासकर क्रिएटिव फील्ड की नौकरियों पर इससे सबसे ज्यादा खतरा है. इस सवाल पर ओपलफोर्स AI के सीईओ आदित्य जोशी कहते हैं- ‘एआई भविष्‍य में नौकरियों को सकारात्‍मक और नकारात्‍मक दोनों ही तरीके से प्रभावित करेगा. सकारात्‍मक असर यह होगा कि यह दोहराव वाले कार्यों को ऑटोमेट करेगा, प्रोडक्टिविटी बढ़ाने में योगदान करेगा और एआई संबंधी क्षेत्रों में नौकरियों के नए अवसरों का भी सृजन करेगा. हेल्‍थकेयर के क्षेत्र में एआई से डायगनॉसिस की प्रक्रिया बेहतर बनेगी और पर्सनलाइज्‍़ड उपचार भी बेहतर तरीके से किया जा सकेगा. लेकिन इसके नकारात्‍मक असर भी कम नहीं होंगे. आदित्य जोशी कहते हैं कि एआई के कारण ऑटोमेशन आने से लोगों की नौकरियों पर असर पड़ेगा, स्किल गैप्‍स बढ़ जाएंगे और आर्थिक स्‍तर पर असमानता भी बढ़ेगी.

साथ ही, एआई के आधार पर फैसले लेने की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता तथा निष्‍पक्षता संबंधी नैतिक सरोकार भी बढ़ सकते हैं. इसके अलावा, पहले से चली आ रही व्‍यवस्‍थाओं में बदलाव का विरोध होने से एआई को अपनाने की राह में अड़चनें आ सकती हैं और वर्कफोर्स पर इसके सकारात्‍मक असर बाधित होने की संभावना है. नौकरियों के मोर्चे पर, संतुलित और लाभकारी बदलावों को सुनिश्चित करने के लिए इन चुनौतियों से निपटना जरूरी है.’

एआई किन क्षेत्रों में इंसानों की दोस्‍त साबित हो सकती है?

ओपलफोर्स AI के सीईओ आदित्य जोशी बताते हैं कि AI हम इंसानों के लिए स्‍वास्‍थ्‍य, शिक्षा, ग्राहक सेवा, निजी सहायकों, भाषायी अनुवाद, मनोरंजन, वित्‍त, निर्माण, ऑटोमेटिक वाहनों, कृषि, पर्यावरण संरक्षण, शोध, निजी स्‍वास्‍थ्‍य और क्रिएटिव आर्ट्स जैसे क्षेत्रों में हमारे लिए मददगार साबित हो सकती है.

यह डायग्‍नॉसिस, लर्निंग को पर्सनलाइज़ कर, ग्राहकों के साथ इंटरेक्‍शन में सुधार, टास्‍क हैंडलिंग, सुगम संचार, कन्‍टेंट रिकमेन्‍डेशन, वित्‍तीय प्रक्रियाओं को आप्‍टीमाइज़ करते हुए, कुशलता में सुधार, सुरक्षित परिवहन सुनिश्चित करते हुए, कृषि कार्यों में सटीकता लाने, पर्यावरण संरक्षण, शोध कार्यों में तेजी, स्‍वास्‍थ्‍य निगरानी और रचनात्‍मक कलाक्षेत्रों में परस्‍पर सहयोग में मदद कर हमारे अनुभवों को बेहतर बनाने की क्षमता रखती है. इन तमाम क्षेत्रों में, एआई से मानवीय क्षमताओं, प्रगति को बेहतर बनाने और खुशहाली बढ़ाने में मदद मिलती है.

AI जब AI को क्रिएट करेगा, कहां जाकर रुकेगा ये सिलसिला?

तकनीक की दुनिया कितनी तेजी से बदल रही है इसका अंदाजा भी आम तौर पर लोगों को नहीं है. एआई के मेकर्स ने ऐसे AI भी क्रिएट कर लिए हैं जो खुद से नया एआई क्रिएट कर सकेंगे. यानी अब एआई को बनाने के लिए या ट्रेन करने के लिए इंसान की भी जरूरत नहीं होगी और एआई खुद से नए-नए तरह के एआई क्रिएट कर सकेगा. एआई के आने से जहां तकनीकी पारदर्शिता बढ़ेगी वहीं इंसान की प्राइवेसी में तकनीक का दखल भी बढ़ेगा. इसलिए हम इंसानों को भी फ्यूचर रेडी होने की ओर बढ़ना होगा. मशीनें जितनी स्मार्ट होंगी हमें उतनी ही तेजी से खुद को भी स्मार्ट बनाते जाना होगा.

इस तेजी से बदलती दुनिया के साथ आप और हम भी चल सकें इसलिए जरूरी है कि एआई के समझें, उससे डरे बिना इस्तेमाल शुरू करें और इसे अपना दोस्त बनाएं ताकि हम अपने इंटेलिजेंस के साथ-साथ एआई के इंटेलिजेंस का भी इस्तेमाल एक बेहतर दुनिया के लिए कर सकें क्योंकि आखिरी सच यही है कि मशीनें कितनी भी स्मार्ट हो जाएं लेकिन एक लिमिट के बाद हर काम में इंसानी हस्तक्षेप की जरूरत जरूर होगी और यहीं से इंसान के लिए मशीनों पर काबिज होने का अवसर शुरू हो जाता है.

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Report: Sundip Kumar Singh/Abhishek Mishra

Photos: Getty Images/AFP/AP

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